Skip to main content

योग्यता महत्वपूर्ण या जाति

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14-18 के अन्तर्गत भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में समानता का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 15 में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भारत के किसी भी नागरिक से धर्म,वंश ,जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा ।किन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में हमारे देश में लोगों को जाति के आधार पर समानता का अधिकार प्राप्त है?  क्या जाति के आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है?


              यह बात बिल्कुल समझ से परे है कि हमारे देश में जाति को इतना महत्व क्यों दिया जाता है?  किसी भी क्षेत्र में लोगों को चुनने से पहले उनकी योग्यता से ज्यादा महत्व उनकी जाति को दिया जाता है। भले ही वह प्रतियोगी परीक्षा देने वाले छात्र हों अथवा चुनाव लडने वाले राजनीतिक उम्मीदवार । सरकारी नौकरी के लिए छात्रों का चुनाव जातीय आरक्षण के आधार पर किया जाता है जो कि एक प्रकार से देश में जातिवाद को बढ़ावा देता है ।किसी भी जिम्मेदार पद के चुनाव के लिए व्यक्ति की योग्यता को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि जाति को । किन्तु दुःख की बात यह है कि हमारे देश में योग्यता का मापदंड ही जाति है।इस जातीय आरक्षण के परिणामस्वरूप  हमारी मानसिकता ही ऐसी बन चुकी है कि हम किसी भी व्यक्ति की सफलता का मूल्यांकन उसकी योग्यता से ज्यादा जातीय आधार पर करते हैं ।
               
                  प्रतियोगी परीक्षा ही नहीं बल्कि राजनीतिक जगत में  भी जातिवाद का कम बोलबाला नहीं है। लोकसभा  और विधानसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवारों का चुनाव करते समय राजनीतिक दल उनकी जाति पर विशेष ध्यान देते हैं । यही नहीं बल्कि मतदाता भी अक्सर उम्मीदवार का चुनाव उनकी जाति के आधार पर ही करते हैं । यह वास्तव में दुःखद है कि अब राष्ट्रपति  पद का चुनाव भी इस जातिवाद से अछूता नहीं रहा । यह चिंतनीय है कि भारत जैसे इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में जब सर्वोच्च पद के चुनाव के लिए उम्मीदवारों को खड़ा किया जाता है तो चर्चा का विषय उनकी प्रतिभा और ज्ञान नहीं बल्कि उनकी जाति होती है।

               इसमें कोई संदेह नहीं है हमारे देश में सभी नागरिकों को जो मौलिक अधिकार प्राप्त है, उसके आधार पर देश के नागरिकों से किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाता है । किन्तु जब तक देश में जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाता रहेगा तब तक देश से जातिवाद का अन्त नहीं किया सकता । इस जातिवादी मानसिकता में बदलाव के लिए आवश्यक है कि देश में सफलता का मापदंड जाति के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर  तय किया जाए।
           
           दरअसल देश में जातिवाद को बढ़ावा देने में राजनीतिक दलों का योगदान भी कम नहीं है । अपने राजनीतिक फायदे के लिए नेता लोगों को जाति और धर्म के आधार पर बाँटने का प्रयास करते हैं । हमारे देश में हर जाति और धर्म के लोग आपस में प्रेम तथा सौहार्द के साथ बिना किसी भेदभाव के रहते हैं । एक - दूसरे से मित्रता करने से पहले अथवा एक - दूसरे की मदद करने से पहले हम सामने वाले व्यक्ति की जाति या धर्म नहीं देखते। किन्तु राजनीतिक दलों द्वारा जाति सम्बन्धी मुद्दों को उठाकर लोगों को यह याद दिलाया जाता है कि वह किस जाति के अथवा किस धर्म के हैं!    नेता हों अथवा आम लोग सभी को यह समझना होगा कि देश में जाति को इतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए ।  देश के विकास के लिए भी यह आवश्यक है कि हम सभी इस जातिवादी मानसिकता से बाहर निकलें तथा लोगों का मूल्यांकन उनकी जाति नहीं बल्कि योग्यता और प्रतिभा के आधार पर करें ।

                                         -मृणालिनी शर्मा 

Comments

Must Read

बच्चों को सताये बोर्ड एक्जाम्स का भूत

भूतों से तो अमूमन सभी बच्चों को डर लगता है, लेकिन उनके लिए भूत से भी ज्यादा डरावना अगर कुछ होता है तो वह है बोर्ड एक्जाम्स का प्रेशर. हर साल 10वीं और 12वीं के कई बच्चे इसके चलते डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. इसकी मुख्य वजह है अभिभावकों और सम्बंधियों द्वारा बच्चों से सुबह- शाम, उठते- बैठते सिर्फ बोर्ड एक्जाम और पढ़ाई की ही बातें करना. फरवरी 2019 में होने वाले बोर्ड एक्जाम्स के लिए जो भी बच्चे इसके लिए तैयारी कर रहे हैं, उन्हें आज हम बतायेंगे इस दौरान प्रेशर से बचने के कुछ तरीके, जिससे वे तनावमुक्त होकर अपने अच्छे से तैयारी कर पायेंगे. 1.      निश्चित करें पढ़ाई का समय – बोर्ड एक्जाम्स में ज्यादा पढ़ाई करना अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए आपको हर वक्त किताब लेकर बैठना जरूरी नहीं है. हर दिन आप पढ़ने का एक समय निश्चित कर लीजिए, जिसमें की आप पूरी लगन और ईमानदारी के साथ पढ़ाई कर सकें. ऐसा करने से आप पढ़ाई के अलावा अपने बाकी कामों को भी समय दे पायेंगे और कोई हर वक्त आपको पढ़ने के लिए नहीं टोकेगा. 2.        आखिरी दिनों पर न रहें निर्भर – बोर...

देशभक्ति आखिर है क्या ?

              पिछले कुछ दिनों से देश में एक नया दौर शुरू हो गया है जहां कुछ लोगों ने देश के नागरिकों को विचारधारा के आधार पर देशभक्त और देशद्रोही के सर्टिफिकेट देने का बीड़ा उठा रखा है । आज देश में यह बहस का बड़ा मुद्दा बना हुआ है कि कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही  !                         किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले यह जानना आवश्यक है कि देशभक्ति आखिर है क्या ? " अपने देश के प्रति श्रद्धा, प्यार और समर्पण की भावना को देशभक्ति कहते हैं ।" और ऐसा कोई भी व्यक्ति जो किसी भी प्रकार की देश विरोधी गतिविधि में संलिप्त होता है, वह  देशद्रोही है और ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए इस देश में कोई जगह नहीं है ।                           किन्तु यह बिल्कुल भी उचित नहीं है कि किसी विशेष विचारधारा के प्रति सहमति या असहमति प्रकट करने पर कोई भी व्यक्ति भारत के आम नागरिकों की देशभक्ति पर प्रश्नचिह्न खड़ा करे। हाल ही ...

सबके दामन साफ, 60 मौतें माफ

अमृतसर के धोबीघाट मैदान में दशहरा का मेला देखने आये लोगों ने उस दिन मौत का जो मंजर देखा, उसे शायद पूरा अमृतसर कई सालों तक नहीं भूला पाएगा. 19 अक्टूबर की उस काली शाम को, जब दशहरा के दिन रावण दहन के दौरान लोग जोड़ा फाटक के पास पटरियों पर जाकर खड़े हो गए थे. सर पर खड़ी मौत से अंजान लोगों को शायद यह पता भी नहीं चला होगा कि कब उनके ऊपर से ट्रेन गुजर गयी और दस सेकेण्ड के अंदर उन्होंने अपनी जान गंवा दी.           लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इतने बड़े कार्यक्रम में झकझोंर देने वाला दर्दनाक हादसा हो गया, 60 लोगों की मौत हो गयी, लेकिन इसका जिम्मेदार कोई भी नहीं है! स्थानीय प्रशासन, रेलवे से लेकर आयोजक और नेता तक सब एक- दूसरे पर आरोप मढते नजर आ रहे हैं. लोग गुस्से में हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं, लेकिन जब कोई गुनहगार ही नहीं है तो वो भी किससे और किसके लिए सजा की मांग करें. आइए आपको बताते हैं कि कैसे पूरे मामले से सब अपना पल्ला झाड़ते हुए खुद को पाक- साफ बता रहे हैं... मैडम नवजोत के बदलते बयान – इस पूरे हादसे में अगर किसी पर सबसे ज्याद...

मैं शहीद हो गया हूं

मैं, मैं भारत माँ का एक सिपाही हूँ, इस मिट्टी में पला- बढ़ा, इस मातृभूमि का बेटा, जो आज इसी मिट्टी में खो गया हूँ, क्योंकि पिछले महीने हुई मुठभेड़ में, मैं शहीद हो गया हूँ ... सीमा पर उस दिन जब मैं दुश्मनों से लड़ रहा था, निडर क़दमों से निरंतर उनकी ओर बढ़ रहा था. उस वक्त न मेरे दिल में कोई डर था, न माथे पर कोई शिकन था, बस मन में एक ख़याल था, कि मेरी शहादत की खबर अगर कोई, मेरे घर पहुंचाएगा, तो मेरा दस साल का बेटा, ये सदमा कैसे सह पायेगा... पर मेरा बेटा उस दिन कुछ ऐसा कह गया, जिसे सुनकर हर हिन्दुस्तानी दिल भर गया. बेटे ने कहा कि मुझे भी पापा के जैसे सेना में जाना है, और पापा के एक सर के बदले, दुश्मन के दस सर काट के लाना है... जब- जब हमारे परिवारों से ऐसी, निर्भीक आवाजें आतीं हैं, तब- तब सीमा पार खड़े, दुश्मन की धरती हिल जाती है... उस आखिरी मुठभेड़ से पहले भी, मैं कई जंग लड़ा था, हाँ, रेगिस्तान की तपती रेत में भी, मैं डटकर खड़ा था, क्योंकि वहां की मिट्टी की सुगंध,   उस तपन को ठंडा कर देती थी, और रेगिस्तान की धरती भी म...

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस हद तक?

भारत एक लोकतांत्रिक देश है अर्थात एक ऐसा देश जहां पर लोगों को अपने अनुसार जीवन जीने और अपने विचार रखने की पूरी स्वतंत्रता है और यह लोकतंत्र मात्र संविधान की किताब तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रत्येक भारतीय के वास्तविक जीवन में भी अमल करता है । अतः इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर कहा जाए कि दुनिया में अगर कोई देश सच्चे मायनों में लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है तो वह भारत ही है।                       भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, अर्थात भारत का प्रत्येक नागरिक अपने विचारों को बोलकर, लिखकर  या किसी अन्य माध्यम से प्रकट करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है । किन्तु इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है  कि आप अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी बयान बाजी या नारेबाजी  करो । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नही है कि आप जिस देश की मिट्टी में पले -बढ़े हो,  उसी भारत माता को बाँटने की बात करो ।                   ...

स्वयं लेनी होगी जिम्मेदारी

कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है तथा समय के साथ सब कुछ बदल जाता है । मनुष्य की प्रकृति भी यही है कि  वह पुरानी चीजों में परिवर्तन देखना चाहता है , अतः वह उनमें दोष निकालना प्रारंभ कर देता है। किन्तु दूसरों में दोष निकालने से पहले हमें अपने आपको एक बार अवश्य देखना चाहिए ।             इसमें कोई संदेह नहीं है कि, हम सभी अपने देश से प्यार करते हैं तथा अपने देश का सम्मान करते हैं । तथा हम सभी अपने देश में एक सकारात्मक परिवर्तन चाहते हैं,  क्यों कि हम सब अपने देश दुनिया के सर्वश्रेष्ठ  देश के रूप में देखना चाहते हैं । किन्तु जनसंख्या, संसाधन  तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से कई देशों से आगे होने के बावजूद  हमारा देश आज भी विकासशील है तथा पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाया है ।               यदि आप किसी भी आम नागरिक से इसका कारण पूछेंगे , तो वह इन सब के लिए सीधे - सीधे भ्रष्ट नेता और सरकार को ही जिम्मेदार ठहरायेगा । किन्तु अब प्रश्न यह उठता है  कि इन सब के लिए केवल सरकार को ही जिम्मेदार ठहराना कितन...

गुम होती दीपक की रोशनी

                     दीपावली रोशनी का पर्व है तथा इसका शाब्दिक अर्थ ही है , ‘दीपों की अवलि’ या ‘दीपों की पंक्ति’. हिन्दू धर्म में दिवाली का एक अलग ही महत्व है | आज से लाखों वर्ष पहले जब भगवान श्री राम, रावण का वध कर के अयोध्या वापस लौटे थे | तब अयोध्यावासियों ने घी के दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था | किन्तु बदलते समय के साथ इन दीपों का रंग ,रूप ,आकार से लेकर , त्योहार मनाने के तथा बधाई देने के तरीके तक बहुत कुछ बदल चुका है |                                                दिवाली में जलने वाले दीपक प्रकाश, आशाओं तथा खुशियों के प्रतीक होते हैं | क्योंकि जब ये दीप जलतें है तो आपका घर प्रकाश से और इन दीयों को बनाने वाले कुम्हारों का घर खुशियों और आशाओं से रोशन होता है | इन दीपों में जो घी होता है उसके पीछे किसी के सपने , दीपक की बाती के पीछे किसी की आशाएं तथा इसकी लौ के पीछे किसी के जीवन का प...

न्याय से बढ़ी उम्मीदें

5 मई ,2017 का यह दिन 'भारतीय न्याय प्रणाली' के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा । क्यों कि आज के दिन मात्र निर्भया को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण देश को न्याय मिला है। 16 दिसम्बर, 2012 की रात हुई उस बर्बर और अमानवीय घटना को याद कर  सारा देश सिहर उठता है । इसी कारण निर्भया के परिवार के साथ- साथ पूरे देश को सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद थी।                                    किन्तु यह भी सत्य है ,कि इतना क्रूर अपराध करने के बाद भी दोषियों को सजा मिलने में लगभग 5 वर्ष लग गये। 10 सितम्बर, 2013 को साकेत कोर्ट ने दोषियों को सजा तो सुनाई थी ,किन्तु दोषियों ने इस फैसले को चुनौती देकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 13 मार्च, 2014 को हाईकोर्ट ने भी अपना फैसला सुनाते हुए फाँसी की सजा बरकरार रखी । इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा । 429 पेज के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया , कि  इस तरह के जघन्य अपराध करने वालों पर किसी भी तरह की रियायत नहीं की जा सकती ...

नारी होना बन गया पाप

              देख के अपनी दयनीय दशा,  आता है मन में एक सवाल । बंगलौर से लेकर दिल्ली तक,  हो रहा क्यों मुझ पर अत्याचार ।।                                                                         मैं तो जननी हूँ, माता हूँ ,                                      जिस ने तुमको जन्म दिया ।                                      अबला समझ समाज ने ,                                     फिर क्यों मुझसे ही छल किया।। बुलंद शहर में दर्द भरी मेरी, न सुनी किसी ने भी पुकार । ...

खेल और जंग

(1)हाथ में काली पट्टी थी ,दिलों में दर्द शहादत का।   राष्ट्रीय खेल हाॅकी ने ,बढ़ाया कद है भारत का।। (2)जंग- ए-ऐलान जब जब किया नापाक था तुमने,   हमारे हर एक फौजी ने दिया जबाव करारा था।   ये तो मैच था केवल ,एक जीत पर उड़ने वालों,   मत भूलो जब हमने ,घर में घुस के मारा था।   क्रिकेट में जीत भी गए एक मैच तो क्या,   राष्ट्रीय खेल पर उस दिन भी हक हमारा था।। (3) वतन की हार पर जश्न मनाने वाले ऐ गद्दारों,   दफन होगे जिस मिट्टी में, वो हिन्दुस्तान की होगी ।। (4)बलिदान हुए इस देश पर जो, करो उनका अपमान नहीं।     है जिसे देश से प्रेम नहीं, वो देश को भी स्वीकायॆ नहीं ।।                                               -मृणालिनी शर्मा