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मैं शहीद हो गया हूं



मैं, मैं भारत माँ का एक सिपाही हूँ,
इस मिट्टी में पला- बढ़ा, इस मातृभूमि का बेटा,
जो आज इसी मिट्टी में खो गया हूँ,
क्योंकि पिछले महीने हुई मुठभेड़ में,
मैं शहीद हो गया हूँ ...

सीमा पर उस दिन जब मैं दुश्मनों से लड़ रहा था,
निडर क़दमों से निरंतर उनकी ओर बढ़ रहा था.
उस वक्त न मेरे दिल में कोई डर था,
न माथे पर कोई शिकन था,
बस मन में एक ख़याल था,
कि मेरी शहादत की खबर अगर कोई,
मेरे घर पहुंचाएगा,
तो मेरा दस साल का बेटा,
ये सदमा कैसे सह पायेगा...

पर मेरा बेटा उस दिन कुछ ऐसा कह गया,
जिसे सुनकर हर हिन्दुस्तानी दिल भर गया.
बेटे ने कहा कि मुझे भी पापा के जैसे सेना में जाना है,
और पापा के एक सर के बदले,
दुश्मन के दस सर काट के लाना है...
जब- जब हमारे परिवारों से ऐसी,
निर्भीक आवाजें आतीं हैं,
तब- तब सीमा पार खड़े,
दुश्मन की धरती हिल जाती है...

उस आखिरी मुठभेड़ से पहले भी,
मैं कई जंग लड़ा था,
हाँ, रेगिस्तान की तपती रेत में भी,
मैं डटकर खड़ा था,
क्योंकि वहां की मिट्टी की सुगंध,
 उस तपन को ठंडा कर देती थी,
और रेगिस्तान की धरती भी मुझसे,
वन्दे मातरम् कहती थी...

सियाचिन में, माइनस साठ डिग्री भी,
मेरे हौसलों को उड़ान देती थी,
क्योंकि मेरे अंदर की देशभक्ति की लौ,
उस बर्फ को पिघला देती थी.
वो जानलेवा सर्दी भी,
 मेरे इरादों को नहीं डिगा पाती थी,
क्योंकि सियाचिन की वो घाटी,
भारत माँ की जयकार लगाती थी...

यह मुसीबतें मुझे हर दिन और मजबूत बनाती थीं,
पर फिर कभी- कभी तो मुझको भी,
घर की याद आती थी,
पत्नी की चिट्ठी पढ़कर अक्सर आँखें भर आती थीं,
बहन की भेजी राखी,
रक्षाबंधन पर खूब रुलाती थी,
बच्चों की किलकारियां भी जब- तब,
मुझे घर बुलाती थीं,
बूढ़े माँ- बाप की बीमारी,
अंदर ही अंदर सताती थी.
पर इन्हीं चुनौतियों ने मुझे,
चट्टान बनाया था,
और सबसे पहले भारत माँ है,
यह इन्हीं लोगों ने सिखाया था...

मुझे गर्व है,
मैंने इस मिट्टी का कर्ज चुकाया है,
और अपनी आखिरी सांस तक,
झंडा ऊँचा फहराया है,
और अपनी आखिरी सांस तक मैंने,
वन्दे मातरम् गाया है...

             जय हिन्द जय भारत 



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