Skip to main content

देशभक्ति आखिर है क्या ?

             

पिछले कुछ दिनों से देश में एक नया दौर शुरू हो गया है जहां कुछ लोगों ने देश के नागरिकों को विचारधारा के आधार पर देशभक्त और देशद्रोही के सर्टिफिकेट देने का बीड़ा उठा रखा है । आज देश में यह बहस का बड़ा मुद्दा बना हुआ है कि कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही !
                        किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले यह जानना आवश्यक है कि देशभक्ति आखिर है क्या ?
" अपने देश के प्रति श्रद्धा, प्यार और समर्पण की भावना को देशभक्ति कहते हैं ।"
और ऐसा कोई भी व्यक्ति जो किसी भी प्रकार की देश विरोधी गतिविधि में संलिप्त होता है, वह देशद्रोही है और ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए इस देश में कोई जगह नहीं है । 
                         किन्तु यह बिल्कुल भी उचित नहीं है कि किसी विशेष विचारधारा के प्रति सहमति या असहमति प्रकट करने पर कोई भी व्यक्ति भारत के आम नागरिकों की देशभक्ति पर प्रश्नचिह्न खड़ा करे। हाल ही में हुए विमुद्रीकरण  के दौरान भी कुछ लोग सिर्फ इस आधार पर देश के आम नागरिकों को देशभक्त और देशद्रोही का सर्टिफिकेट बाँट रहे थे कि सामने वाला इस फैसले का समर्थन करता है या नहीं । यदि कोई व्यक्ति जिसे वास्तव में इस निर्णय से समस्या का सामना करना पड़ा,  यदि अपनी समस्या किसी से साझा करता है तो सर्टिफिकेट वितरक दल के सदस्य उससे पूछते हैं कि ''क्या आप अपने देश का भला नहीं चाहते ?''
                       अब प्रश्न यह उठता है कि उन लोगों को देशभक्त और देशद्रोही का सर्टिफिकेट बाँटने का अधिकार दिया किसने ? किसी विशेष  विचारधारा का समर्थन अथवा विरोध करने मात्र से कोई देशभक्त अथवा देशद्रोही नहीं हो जाता ।
                यदि आपको देशभक्ति का वास्तविक अर्थ ही जानना है तो उन सैनिकों से पूछिए , जो शून्य से भी कम तापमान में सीमा पर डटकर खडे रहते है सिर्फ इसलिए ताकि कोई भी दुश्मन हमारी भारत माता को स्पर्श न कर सके । देशभक्ति का वास्तविक अर्थ उस पत्नी से पूछिए ,जो अपने शहीद पति के अन्तिम संस्कार पर प्रण लेती है कि मेरा बेटा भी बडे होकर अपने पिता के जैसे बहादुर सैनिक बनेगा । देशभक्ति का वास्तविक अर्थ पूछिए उस पिता से जो कहता है कि मुझे गर्व है कि अपने बेटे की शहादत पर।
                       हम सभी लोग जिन्होंने इस देश में जन्म लिया ।भारतमाता की गोद में खेलकर बडे हुए , और वो लोग भी जो किसी कारणवश अपने देश से दूर रह रहे हैं  लेकिन उनका दिल कहीं न कहीं इस देश की मिट्टी से जुडा हुआ है।
हम सभी अपने देश से प्रेम करते हैं और सभी के अंदर देशभक्ति की भावना कूट - कूटकर भरी हुई है । अतः सर्टिफिकेट वितरक दल  से अनुरोध है कि वह देशभक्ति और देशद्रोही जैसे संवेदनशील  शब्दों का प्रयोग यथाउचित ही करें ।  
         
 और सभी भारतीय यदि हम स्वयं को सच्चे अर्थों में देशभक्त मानते हैं तो हमें सोशल साइट्स या किसी अन्य माध्यम से यह सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। बस हम सभी अपने देश से प्रेम करे ,संविधान पर भरोसा करें, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करें, नियमों का पालन करें, समय से टैक्स भरें तथा अपने देश को स्वच्छ रखकर जिम्मेदार नागरिक का फर्ज अदा करें । यही सच्चे अर्थों में हमारे देशभक्त होने का प्रमाण है ।

                 जय हिन्द जय भारत

                                  - मृणालिनी शर्मा

Comments

Bht badhiya 👍👍👌👌👌👌👌
Unknown said…
Thank u😊😊
VIVEK SHUKLA said…
शानदार

Must Read

बच्चों को सताये बोर्ड एक्जाम्स का भूत

भूतों से तो अमूमन सभी बच्चों को डर लगता है, लेकिन उनके लिए भूत से भी ज्यादा डरावना अगर कुछ होता है तो वह है बोर्ड एक्जाम्स का प्रेशर. हर साल 10वीं और 12वीं के कई बच्चे इसके चलते डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. इसकी मुख्य वजह है अभिभावकों और सम्बंधियों द्वारा बच्चों से सुबह- शाम, उठते- बैठते सिर्फ बोर्ड एक्जाम और पढ़ाई की ही बातें करना. फरवरी 2019 में होने वाले बोर्ड एक्जाम्स के लिए जो भी बच्चे इसके लिए तैयारी कर रहे हैं, उन्हें आज हम बतायेंगे इस दौरान प्रेशर से बचने के कुछ तरीके, जिससे वे तनावमुक्त होकर अपने अच्छे से तैयारी कर पायेंगे. 1.      निश्चित करें पढ़ाई का समय – बोर्ड एक्जाम्स में ज्यादा पढ़ाई करना अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए आपको हर वक्त किताब लेकर बैठना जरूरी नहीं है. हर दिन आप पढ़ने का एक समय निश्चित कर लीजिए, जिसमें की आप पूरी लगन और ईमानदारी के साथ पढ़ाई कर सकें. ऐसा करने से आप पढ़ाई के अलावा अपने बाकी कामों को भी समय दे पायेंगे और कोई हर वक्त आपको पढ़ने के लिए नहीं टोकेगा. 2.        आखिरी दिनों पर न रहें निर्भर – बोर...

सीता – रावण संवाद

रावण - मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे, सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ? सीता जी – तेरे दुस्साहस का तुझको, अंजाम यहीं बतलायेंगे, जब रावण तेरी लंका में, मेरे रघुनंदन आयेंगे. रावण – जो वन में नहीं बचा पाये, वो कैसे यहां बचायेंगे, तू मेरी जीवनसाथी बन, वो राम यहां न आयेंगे. जलधाम जो इतना गहरा है, न पार इसे कर पायेंगे, वो खुद तो इसमें डूबेंगे, और सबको साथ डुबायेंगे. इस लंकाधिपति की लंका तक, तेरे पति पहुंच न पायेंगे, वो धनुष- भंग करने वाले, ये सिंधु देख घबरायेंगे. सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ? मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे... सीता जी – कपटी तेरे कर्मों का फल, देने लंका वो आयेंगे, वो धनुष- भंग करने वाले, फिर से सीता ले जायेंगे. तू उनके कद को क्या जानें, पग ऐसा एक बढ़ायेंगे, ये धरती, सागर और गगन, उस पग में ही नप जायेंगे. तप में उनके इतना बल है, वो जिस पत्थर को उठायेंगे, वो ‘ राम ’ के नाम से तैरेंगे, सागर में सेतु बनायेंगे. सुन रावण तेरी लंका में, ऐसे रघुनंदन आयेंगे. त...

सबके दामन साफ, 60 मौतें माफ

अमृतसर के धोबीघाट मैदान में दशहरा का मेला देखने आये लोगों ने उस दिन मौत का जो मंजर देखा, उसे शायद पूरा अमृतसर कई सालों तक नहीं भूला पाएगा. 19 अक्टूबर की उस काली शाम को, जब दशहरा के दिन रावण दहन के दौरान लोग जोड़ा फाटक के पास पटरियों पर जाकर खड़े हो गए थे. सर पर खड़ी मौत से अंजान लोगों को शायद यह पता भी नहीं चला होगा कि कब उनके ऊपर से ट्रेन गुजर गयी और दस सेकेण्ड के अंदर उन्होंने अपनी जान गंवा दी.           लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इतने बड़े कार्यक्रम में झकझोंर देने वाला दर्दनाक हादसा हो गया, 60 लोगों की मौत हो गयी, लेकिन इसका जिम्मेदार कोई भी नहीं है! स्थानीय प्रशासन, रेलवे से लेकर आयोजक और नेता तक सब एक- दूसरे पर आरोप मढते नजर आ रहे हैं. लोग गुस्से में हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं, लेकिन जब कोई गुनहगार ही नहीं है तो वो भी किससे और किसके लिए सजा की मांग करें. आइए आपको बताते हैं कि कैसे पूरे मामले से सब अपना पल्ला झाड़ते हुए खुद को पाक- साफ बता रहे हैं... मैडम नवजोत के बदलते बयान – इस पूरे हादसे में अगर किसी पर सबसे ज्याद...

नारी सशक्तिकरण का डिजिटल रूप या पब्लिसिटी स्टंट, आखिर क्या है ‘मीटू’ के पीछे का सच

बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने जाने- माने अभिनेता नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर भारत में ‘ मीटू ’ नामक जिस आग को जो हवा दी, उसने बॉलीवुड समेत, मीडिया, राजनीति जगत और बीसीसीआई तक को अपनी चपेट में ले लिया है. नाना पाटेकर के बाद अब तक फिल्म डॉयरेक्टर विकास बहल, राज्यसभा सांसद एम.जे.अकबर, बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी और यहां तक की संस्कारी बाबू आलोकनाथ समेत कई बड़े धुरधंर मीटू के लपेटे में आ चुके हैं.        कई बड़े नामों के मीटू में फंसने के बाद देश भर में इसको लेकर हलचल पैदा हो गयी है. कुछ लोग इसे नारी सशक्तिकरण के डिजिटल रूप की तरह देख रहे हैं तो कुछ इसे महज एक पब्लिसिटी स्टंट मान रहे हैं. जरूरी नहीं है कि मीटू के अंतर्गत लगाए गये सभी आरोप पूरी तरह से सही हों, लेकिन   इसमें कोई दोहराय नहीं है कि इन आरोपों में कुछ हद तक तो सच्चाई है ही, जो कि काम की जगह पर महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार की सच्चाई उजागर कर रहे हैं. यह मुहिम सच सामने लाने का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है या पब्लिसिटी स्टंट ये तो वक्त बतायेगा, फिलहाल हम आपको बताते हैं मीटू की अब तक की...

तारीख बता दो नेता जी

नारी सशक्तिकरण पर चर्चा के लिए, एक मंच सजाया गया, जहां पर वहां के माननीय नेता जी, को भी बुलाया गया, बातों और वादों का पिटारा लेकर, नेता जी मंच पर आते हैं, फिर नारी के सम्मान में, दो - चार नई पंक्तियाँ सुनाते हैं, नारी पूजनीय व वन्दनीय है, यह पाठ सभी को पढ़ाते  हैं, फिर नारी को मान और सम्मान दिलाने के, नए- नए वादे करते जाते हैं | नेता की बातों से थक कर, एक महिला श्रोता बोल पड़ी, भावुक होकर सबके समक्ष, जज्बात यूँ अपने खोल पड़ी, नेता जी मैं तो एक राजनीतिक मुद्दा हूँ, जिसे भुना आप चुनाव तो जीत जाओगे, पर कब तक झूठे वादों से, ऐसे हमको बहलाओगे, इन भाषणों और कविताओं से ही, तुम कब तक मान बढ़ाओगे, तारीख बता दो नेता जी, किस दिन सम्मान दिलाओगे ? फिल्मों की प्रेम कहानी तो, सबको पसंद आती है, अपनी बेटी फिर क्यों तुमको, चरित्रहीन नजर आती है, फिल्मों की अदाकाराओं की, आजादी भी बड़ा लुभाती है, अपनी बहुएं फिर क्यों तुमको, घूँघट में ही भाती हैं, आजादी का असली मतलब, कैसे इनको समझाओगे, तारीख बता दो नेता जी, किस दिन सम्मान दिलाओगे ? नारी तुम केवल श्रृद्धा हो, ये ग...

मैं शहीद हो गया हूं

मैं, मैं भारत माँ का एक सिपाही हूँ, इस मिट्टी में पला- बढ़ा, इस मातृभूमि का बेटा, जो आज इसी मिट्टी में खो गया हूँ, क्योंकि पिछले महीने हुई मुठभेड़ में, मैं शहीद हो गया हूँ ... सीमा पर उस दिन जब मैं दुश्मनों से लड़ रहा था, निडर क़दमों से निरंतर उनकी ओर बढ़ रहा था. उस वक्त न मेरे दिल में कोई डर था, न माथे पर कोई शिकन था, बस मन में एक ख़याल था, कि मेरी शहादत की खबर अगर कोई, मेरे घर पहुंचाएगा, तो मेरा दस साल का बेटा, ये सदमा कैसे सह पायेगा... पर मेरा बेटा उस दिन कुछ ऐसा कह गया, जिसे सुनकर हर हिन्दुस्तानी दिल भर गया. बेटे ने कहा कि मुझे भी पापा के जैसे सेना में जाना है, और पापा के एक सर के बदले, दुश्मन के दस सर काट के लाना है... जब- जब हमारे परिवारों से ऐसी, निर्भीक आवाजें आतीं हैं, तब- तब सीमा पार खड़े, दुश्मन की धरती हिल जाती है... उस आखिरी मुठभेड़ से पहले भी, मैं कई जंग लड़ा था, हाँ, रेगिस्तान की तपती रेत में भी, मैं डटकर खड़ा था, क्योंकि वहां की मिट्टी की सुगंध,   उस तपन को ठंडा कर देती थी, और रेगिस्तान की धरती भी म...

प्रकृति

तपता है सूरज दिनभर , दुनिया को रोशन करने को। चलती रहती है वायु सदा , जन -जन को शीतल करने को । बहता है बादल भी खुद, धरती को जीवन देने को। स्वार्थी मात्र एक मानव है , जो खड़ा है सब कुछ लेने को । तुमको सब कुछ देती प्रकृति, है शेष नहीं कुछ देने को। इस धरती का सम्मान करो, है जगह स्वर्ग यह रहने को। अब मत इसको बर्बाद करो , इस स्वर्ग को स्वर्ग ही रहने दो।                                  -मृणालिनी शर्मा

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस हद तक?

भारत एक लोकतांत्रिक देश है अर्थात एक ऐसा देश जहां पर लोगों को अपने अनुसार जीवन जीने और अपने विचार रखने की पूरी स्वतंत्रता है और यह लोकतंत्र मात्र संविधान की किताब तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रत्येक भारतीय के वास्तविक जीवन में भी अमल करता है । अतः इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर कहा जाए कि दुनिया में अगर कोई देश सच्चे मायनों में लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है तो वह भारत ही है।                       भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, अर्थात भारत का प्रत्येक नागरिक अपने विचारों को बोलकर, लिखकर  या किसी अन्य माध्यम से प्रकट करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है । किन्तु इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है  कि आप अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी बयान बाजी या नारेबाजी  करो । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नही है कि आप जिस देश की मिट्टी में पले -बढ़े हो,  उसी भारत माता को बाँटने की बात करो ।                   ...

Farmer-A Son of Soil

He struggles in a pickle, He burns himself in sunlight. He grows grain for the world , He is the saviour of mankind.                 He works hard in every season,                 So that people can survive.                 He feeds the entire humanity,                 Yet sleeps hungry everynight. When he cries with tears of sorrow, No one even hears his voice. Whether he cries or he dies, We just ignore and close our eyes.                                   He is a farmer,a son of soil,                   Who is today committing suicide.                 Now please don't politicize his death,       ...