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स्वयं लेनी होगी जिम्मेदारी

कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है तथा समय के साथ सब कुछ बदल जाता है । मनुष्य की प्रकृति भी यही है कि  वह पुरानी चीजों में परिवर्तन देखना चाहता है , अतः वह उनमें दोष निकालना प्रारंभ कर देता है। किन्तु दूसरों में दोष निकालने से पहले हमें अपने आपको एक बार अवश्य देखना चाहिए ।
            इसमें कोई संदेह नहीं है कि, हम सभी अपने देश से प्यार करते हैं तथा अपने देश का सम्मान करते हैं । तथा हम सभी अपने देश में एक सकारात्मक परिवर्तन चाहते हैं,  क्यों कि हम सब अपने देश दुनिया के सर्वश्रेष्ठ  देश के रूप में देखना चाहते हैं । किन्तु जनसंख्या, संसाधन  तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से कई देशों से आगे होने के बावजूद  हमारा देश आज भी विकासशील है तथा पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाया है ।
              यदि आप किसी भी आम नागरिक से इसका कारण पूछेंगे , तो वह इन सब के लिए सीधे - सीधे भ्रष्ट नेता और सरकार को ही जिम्मेदार ठहरायेगा । किन्तु अब प्रश्न यह उठता है  कि इन सब के लिए केवल सरकार को ही जिम्मेदार ठहराना कितना उचित है ?  यदि हम आज भी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाए ,तो उसके बराबर के जिम्मेदार हम भी है ।  अधिकारी रिश्वत इसलिए लेते हैं, क्यों कि हम अपना काम जल्दी करवाने  व अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए उन्हे रिश्वत देते हैं । हम से आशय यहाँ मात्र उन लोगों से है जो ऐसा करते है । हमारे देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो अपना कार्य  सच्ची निष्ठा व ईमानदारी से करते हैं,  भले ही परिस्थितियाँ चाहें कैसी भी हों।
                        हम आज भी विकसित नहीं हो पाए,इसका कारण केवल सरकार ही नहीं है ।बल्कि इसका कारण हर वो इंजीनियर है ,जो चंद पैसों के लिए सडकों
व इमारतों को इतना कमजोर  बनाता है कि वह निर्माण के कुछ वर्ष बाद ही ढहने लगती हैं ।इसका जिम्मेदार हर वो डाॅक्टर है
जो पैसों के लालच में मरीज की किडनी तक बेच देता है ।इसका जिम्मेदार हर वो शिक्षक है, जो सरकार से तनख्वाह तो पूरी लेते है ,किन्तु शायद ही कभी विद्यालय में उपस्थित होते हों,क्यों कि उनका उद्देश्य छात्रों को शिक्षित करना नहीं किन्तु धन कमाना है।
                    हम में से अधिकांश लोग अपने कर्म को पूजा मानकर पूरी निष्ठा से अपना कार्य करते हैं, किन्तु  सिर्फ कुछ लोगों का ही ईमानदार होना पर्याप्त नहीं है ।क्यों कि अपना देश एक परिवार की भांति है । यदि परिवार के कुछ सदस्य भ्रष्ट या बेईमान होंगे तो यह परिवार  (देश)  कभी विकास नहीं कर पायेगा ।
         हम भारतीय अगर चाहें तो क्या नहीं कर सकते हैं । गूगल (सुन्दर पिचाई) से लेकर माइक्रोसॉफ्ट  (सत्य नडेला) तक के सीईओ भारतीय ही हैं । यहां तक कि पेपसीको (इन्द्रा कृष्णमूर्ति) और मास्टर कार्ड (अजय पाल सिंह बंगा ) के सीईओ भी भारतीय ही है। हाल ही में इसरो ने 104 सैटेलाइट एक साथ प्रक्षेपित कर एक रिकार्ड कायम किया तथा दुनिया भर में भारत का नाम गर्व से ऊंचा कर दिया ।
             हम भारतीय किसी से कमजोर नहीं हैं, और न ही हम में प्रतिभा की कमी है। हमें आवश्यकता है ,तो बस स्वयं
में थोड़ा बदलाव लाने की । यदि हम वास्तव में अपने देश से प्रेम करते हैं ,तो सच्ची निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी से अपना कार्य करें । हम अपनी जनसंख्या को अपनी कमजोरी न समझकर अपनी जनशक्ति के रूप में प्रयोग करें ।एक बार दृढ संकल्प करने के बाद हम अपनी जनशक्ति व एकता के दम पर किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं । अतः जिस दिन भारत का प्रत्येक  नागरिक पूरी ईमानदारी से अपना कार्य करेगा ,उस दिन यह देश स्वयं ही विकास की नई उंचाइयों को छूने लगेगा।
                                           - मृणालिनी शर्मा 

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