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सीता – रावण संवाद


रावण -
मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे,
सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ?

सीता जी –
तेरे दुस्साहस का तुझको, अंजाम यहीं बतलायेंगे,
जब रावण तेरी लंका में, मेरे रघुनंदन आयेंगे.

रावण –
जो वन में नहीं बचा पाये, वो कैसे यहां बचायेंगे,
तू मेरी जीवनसाथी बन, वो राम यहां न आयेंगे.
जलधाम जो इतना गहरा है, न पार इसे कर पायेंगे,
वो खुद तो इसमें डूबेंगे, और सबको साथ डुबायेंगे.
इस लंकाधिपति की लंका तक, तेरे पति पहुंच न पायेंगे,
वो धनुष- भंग करने वाले, ये सिंधु देख घबरायेंगे.

सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ?
मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे...


सीता जी –
कपटी तेरे कर्मों का फल, देने लंका वो आयेंगे,
वो धनुष- भंग करने वाले, फिर से सीता ले जायेंगे.
तू उनके कद को क्या जानें, पग ऐसा एक बढ़ायेंगे,
ये धरती, सागर और गगन, उस पग में ही नप जायेंगे.
तप में उनके इतना बल है, वो जिस पत्थर को उठायेंगे,
वो राम के नाम से तैरेंगे, सागर में सेतु बनायेंगे.

सुन रावण तेरी लंका में, ऐसे रघुनंदन आयेंगे.
तेरे दुस्साहस का तुझको, अंजाम यहीं बतलायेंगे...


रावण –
माना कर लेंगे सिंधु पार, पर मुझसे न लड़ पायेंगे,
इतने रणधीर हैं इस रज में, वो कैसे उन्हें हरायेंगे.
अहिरावण, अक्षय, कुम्भकर्ण, का वध कैसे कर पायेंगे,
मेघनाद से वीरों को, तपसी क्या धूल चटायेंगे ?
मेरे मायावी पुत्र उन्हें, माया ऐसी दिखलायेंगे,
तुमको ले जाना दूर रहा, खुद वापस न जा पाएंगे.

सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ?
मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे...


सीता जी –
तेरे सारे रणधीर तेरी, इस रज में ही मिल जायेंगे,
वो दशरथ- पुत्र यहां अपना, धनुआ जैसे ही उठायेंगे.
उनकी दृष्टि का अग्नि- ताप, ये दानव न सह पायेंगे,
लेने मुझको आयेंगे पर, लंका निर्जन कर जायेंगे.
वो शूरवीर रघुवर राजन, करतब ऐसा दिखालायेंगे,
दशानन तेरे दस आनन, एक तीर से ही कट जायेंगे.

सुन रावण तेरी लंका में, ऐसे रघुनंदन आयेंगे.
तेरे दुस्साहस का तुझको, अंजाम यहीं बतलायेंगे...

-    मृणालिनी शर्मा




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