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गुम होती दीपक की रोशनी


                 दीपावली रोशनी का पर्व है तथा इसका शाब्दिक अर्थ ही है , ‘दीपों की अवलि’ या ‘दीपों की पंक्ति’. हिन्दू धर्म में दिवाली का एक अलग ही महत्व है | आज से लाखों वर्ष पहले जब भगवान श्री राम, रावण का वध कर के अयोध्या वापस लौटे थे | तब अयोध्यावासियों ने घी के दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था |किन्तु बदलते समय के साथ इन दीपों का रंग ,रूप ,आकार से लेकर , त्योहार मनाने के तथा बधाई देने के तरीके तक बहुत कुछ बदल चुका है |
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     दिवाली में जलने वाले दीपक प्रकाश, आशाओं तथा खुशियों के प्रतीक होते हैं | क्योंकि जब ये दीप जलतें है तो आपका घर प्रकाश से और इन दीयों को बनाने वाले कुम्हारों का घर खुशियों और आशाओं से रोशन होता है | इन दीपों में जो घी होता है उसके पीछे किसी के सपने , दीपक की बाती के पीछे किसी की आशाएं तथा इसकी लौ के पीछे किसी के जीवन का प्रकाश छिपा रहता है | किन्तु आज के समय में झालरों और इलेक्ट्रॉनिक दीयों की चकाचौंध में घी के इन दीपों की रोशनी फ़ीकी पड़ती नज़र आ रही है | इन लाइटों से अब दिवाली में शहर तो जगमग हो जाता है ,किन्तु यह रोशनी कुछ घरों में अंधेरा भी छोड़ जाती है |
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     सिर्फ दीयों के रूप में ही नहीं लोगों की विचारधारा में भी समय के साथ बहुत बदलाव आया है |पहले दीपावली में लोग घर में शान्तिपूर्वक लक्ष्मी – गणेश जी की पूजा अर्चना कर के पूरे घर में घी के दीप जलाते थे. किन्तु आज कुछ लोगों के लिए दिवाली में शराब पीना ,जुआं खेलना और हर्ष फायरिंग जैसे आदि असामाजिक कार्य करना ही इस उत्सव को मानाने का तरीका बन चुका है | इतना ही नहीं बल्कि जो लोग पहले एक – दूसरे के घर मिष्ठान व उपहार ले जाकर तथा गले मिलकर दिवाली की बधाइयाँ देते थे ,आज सोशल साइट्स ( फेसबुक ,वाट्स एप आदि ) पर ही शुभकामनाएं देकर अपने आप को कर्तव्यमुक्त समझते हैं | इतना ही नहीं आज के समय में दिवाली की शुभकामनाओं के सन्देश के द्वारा अच्छा – खासा राजनीतिक प्रचार भी किया जा रहा है |
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       दिवाली पर होने वाली आतिशबाजी भी इस त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं | किन्तु पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से प्रदूषण बढ़ रहा है ,उसे देखते हुए सुप्रीमकोर्ट ने एक नवम्बर तक दिल्ली एनसीआर में आतिशबाजी का सामान बेचने पर बैन लगा दिया है | इस फैसले का दिल्ली से लेकर सोशल साइट्स तक हर जगह विरोध हो रहा है | कुछ लोग इसे धार्मिक आजादी के खिलाफ और हिन्दू विरोधी भी करार दे रहे हैं | किन्तु हमे यह समझना होगा कि पर्यावरण की सुरक्षा भी उतनी ही जरुरी है, जितना कि उत्सव मनाना | कहने को तो यह एक दिन ही आतिशबाजी होती है किन्तु इस एक दिन की आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण को सामान्य होने में महीनों लग जाते हैं |हालाँकि अगर प्रदूषण की ही बात है तो फिर उन सभी चीजों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए या नियत्रंण रखना चाहिए  जिनसे प्रदूषण फैलता है।
           
किन्तु अब जब कोर्ट ने आदेश दे ही दिया है तो लोगों को उसका पालन करना ही पड़ेगा । ऐसा नहीं है कि पटाखे न जलाने से दीपावली का महत्व कहीं कम होने वाला है | दिवाली का वास्तविक महत्व घी के दीप जलाने में है. क्यों कि घी के दीप जलाने से त्योहार का महत्व भी बना रहता है और पर्यावरण भी शुद्ध होता है | किन्तु यह भी सत्य है कि सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले से पटाखा विक्रेताओं तथा बनाने वालों को काफी नुकसान होगा | यदि सरकार व कोर्ट को ऐसा कोई निर्णय लेना ही था तो उसकी जानकारी आतिशबाजी की मैन्युफैक्चरिंग के पहले ही दे देनी चाहिए थी | रही बात त्योहार मनाने की तो यह खुशियों का पर्व है , आप इस पर्व पर जरुरतमंदों की मदद कर के उन्हें कुछ उपहार देकर थोड़ी अच्छाई व खुशियाँ बांटकर भी अपनी दिवाली के महत्व को बढ़ा सकते है |
       

                       

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