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सीता – रावण संवाद

रावण - मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे, सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ? सीता जी – तेरे दुस्साहस का तुझको, अंजाम यहीं बतलायेंगे, जब रावण तेरी लंका में, मेरे रघुनंदन आयेंगे. रावण – जो वन में नहीं बचा पाये, वो कैसे यहां बचायेंगे, तू मेरी जीवनसाथी बन, वो राम यहां न आयेंगे. जलधाम जो इतना गहरा है, न पार इसे कर पायेंगे, वो खुद तो इसमें डूबेंगे, और सबको साथ डुबायेंगे. इस लंकाधिपति की लंका तक, तेरे पति पहुंच न पायेंगे, वो धनुष- भंग करने वाले, ये सिंधु देख घबरायेंगे. सुन सीता सागर पार यहां, कैसे रघुनंदन आयेंगे ? मैं जिनकी पत्नी हर लाया, वो क्या मेरा कर पायेंगे... सीता जी – कपटी तेरे कर्मों का फल, देने लंका वो आयेंगे, वो धनुष- भंग करने वाले, फिर से सीता ले जायेंगे. तू उनके कद को क्या जानें, पग ऐसा एक बढ़ायेंगे, ये धरती, सागर और गगन, उस पग में ही नप जायेंगे. तप में उनके इतना बल है, वो जिस पत्थर को उठायेंगे, वो ‘ राम ’ के नाम से तैरेंगे, सागर में सेतु बनायेंगे. सुन रावण तेरी लंका में, ऐसे रघुनंदन आयेंगे. त
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बच्चों को सताये बोर्ड एक्जाम्स का भूत

भूतों से तो अमूमन सभी बच्चों को डर लगता है, लेकिन उनके लिए भूत से भी ज्यादा डरावना अगर कुछ होता है तो वह है बोर्ड एक्जाम्स का प्रेशर. हर साल 10वीं और 12वीं के कई बच्चे इसके चलते डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. इसकी मुख्य वजह है अभिभावकों और सम्बंधियों द्वारा बच्चों से सुबह- शाम, उठते- बैठते सिर्फ बोर्ड एक्जाम और पढ़ाई की ही बातें करना. फरवरी 2019 में होने वाले बोर्ड एक्जाम्स के लिए जो भी बच्चे इसके लिए तैयारी कर रहे हैं, उन्हें आज हम बतायेंगे इस दौरान प्रेशर से बचने के कुछ तरीके, जिससे वे तनावमुक्त होकर अपने अच्छे से तैयारी कर पायेंगे. 1.      निश्चित करें पढ़ाई का समय – बोर्ड एक्जाम्स में ज्यादा पढ़ाई करना अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए आपको हर वक्त किताब लेकर बैठना जरूरी नहीं है. हर दिन आप पढ़ने का एक समय निश्चित कर लीजिए, जिसमें की आप पूरी लगन और ईमानदारी के साथ पढ़ाई कर सकें. ऐसा करने से आप पढ़ाई के अलावा अपने बाकी कामों को भी समय दे पायेंगे और कोई हर वक्त आपको पढ़ने के लिए नहीं टोकेगा. 2.        आखिरी दिनों पर न रहें निर्भर – बोर्ड एक्जाम की तैयारी करते वक्त कई स्टूडेंट्स

सबके दामन साफ, 60 मौतें माफ

अमृतसर के धोबीघाट मैदान में दशहरा का मेला देखने आये लोगों ने उस दिन मौत का जो मंजर देखा, उसे शायद पूरा अमृतसर कई सालों तक नहीं भूला पाएगा. 19 अक्टूबर की उस काली शाम को, जब दशहरा के दिन रावण दहन के दौरान लोग जोड़ा फाटक के पास पटरियों पर जाकर खड़े हो गए थे. सर पर खड़ी मौत से अंजान लोगों को शायद यह पता भी नहीं चला होगा कि कब उनके ऊपर से ट्रेन गुजर गयी और दस सेकेण्ड के अंदर उन्होंने अपनी जान गंवा दी.           लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इतने बड़े कार्यक्रम में झकझोंर देने वाला दर्दनाक हादसा हो गया, 60 लोगों की मौत हो गयी, लेकिन इसका जिम्मेदार कोई भी नहीं है! स्थानीय प्रशासन, रेलवे से लेकर आयोजक और नेता तक सब एक- दूसरे पर आरोप मढते नजर आ रहे हैं. लोग गुस्से में हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं, लेकिन जब कोई गुनहगार ही नहीं है तो वो भी किससे और किसके लिए सजा की मांग करें. आइए आपको बताते हैं कि कैसे पूरे मामले से सब अपना पल्ला झाड़ते हुए खुद को पाक- साफ बता रहे हैं... मैडम नवजोत के बदलते बयान – इस पूरे हादसे में अगर किसी पर सबसे ज्यादा सवाल खड़े हो रहे हैं तो वो हैं नवजोत सिंह

नारी सशक्तिकरण का डिजिटल रूप या पब्लिसिटी स्टंट, आखिर क्या है ‘मीटू’ के पीछे का सच

बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने जाने- माने अभिनेता नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर भारत में ‘ मीटू ’ नामक जिस आग को जो हवा दी, उसने बॉलीवुड समेत, मीडिया, राजनीति जगत और बीसीसीआई तक को अपनी चपेट में ले लिया है. नाना पाटेकर के बाद अब तक फिल्म डॉयरेक्टर विकास बहल, राज्यसभा सांसद एम.जे.अकबर, बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी और यहां तक की संस्कारी बाबू आलोकनाथ समेत कई बड़े धुरधंर मीटू के लपेटे में आ चुके हैं.        कई बड़े नामों के मीटू में फंसने के बाद देश भर में इसको लेकर हलचल पैदा हो गयी है. कुछ लोग इसे नारी सशक्तिकरण के डिजिटल रूप की तरह देख रहे हैं तो कुछ इसे महज एक पब्लिसिटी स्टंट मान रहे हैं. जरूरी नहीं है कि मीटू के अंतर्गत लगाए गये सभी आरोप पूरी तरह से सही हों, लेकिन   इसमें कोई दोहराय नहीं है कि इन आरोपों में कुछ हद तक तो सच्चाई है ही, जो कि काम की जगह पर महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार की सच्चाई उजागर कर रहे हैं. यह मुहिम सच सामने लाने का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है या पब्लिसिटी स्टंट ये तो वक्त बतायेगा, फिलहाल हम आपको बताते हैं मीटू की अब तक की पूरी कहानी... आखि

मैं शहीद हो गया हूं

मैं, मैं भारत माँ का एक सिपाही हूँ, इस मिट्टी में पला- बढ़ा, इस मातृभूमि का बेटा, जो आज इसी मिट्टी में खो गया हूँ, क्योंकि पिछले महीने हुई मुठभेड़ में, मैं शहीद हो गया हूँ ... सीमा पर उस दिन जब मैं दुश्मनों से लड़ रहा था, निडर क़दमों से निरंतर उनकी ओर बढ़ रहा था. उस वक्त न मेरे दिल में कोई डर था, न माथे पर कोई शिकन था, बस मन में एक ख़याल था, कि मेरी शहादत की खबर अगर कोई, मेरे घर पहुंचाएगा, तो मेरा दस साल का बेटा, ये सदमा कैसे सह पायेगा... पर मेरा बेटा उस दिन कुछ ऐसा कह गया, जिसे सुनकर हर हिन्दुस्तानी दिल भर गया. बेटे ने कहा कि मुझे भी पापा के जैसे सेना में जाना है, और पापा के एक सर के बदले, दुश्मन के दस सर काट के लाना है... जब- जब हमारे परिवारों से ऐसी, निर्भीक आवाजें आतीं हैं, तब- तब सीमा पार खड़े, दुश्मन की धरती हिल जाती है... उस आखिरी मुठभेड़ से पहले भी, मैं कई जंग लड़ा था, हाँ, रेगिस्तान की तपती रेत में भी, मैं डटकर खड़ा था, क्योंकि वहां की मिट्टी की सुगंध,   उस तपन को ठंडा कर देती थी, और रेगिस्तान की धरती भी मुझसे

मत राजनीति बदनाम करो

ओ सत्ताधारी जनसेवक, जनहित में तो कुछ काम करो। अपनी ओछी करतूतों से, मत राजनीति बदनाम करो।। खाकी को तुमने हाथों की, कठपुतली सा बना दिया। न्याय- व्यवस्था को अपनी, उँगली पर तुमने घुमा दिया। अंधे कानून के पर्दे में, क्या- क्या न तुमने कांड किया। है शेष नहीं कोई ऐसा, जो तुमने न अपराध किया। तुम लोकतंत्र के सर पर चढ़, मत इससे खिलवाड़ करो। अपनी ओछी करतूतों से, मत राजनीति बदनाम करो।। गद्दी के लालच में तुमने, मानवता को शर्मसार किया। नोटों की चकाचौंध के आगे, अपना बेच ईमान दिया। हत्याएं, दंगे, लूटमार, घोटाले, भ्रष्टाचार किया। मर्यादा लांघ दी सारी, बेटी संग दुराचार किया। भारत की पावन माटी पर, मत नित दिन नये बवाल करो। अपनी ओछी करतूतों से, मत राजनीति बदनाम करो।। जिस भोली जनता ने तुम पर, कई बार विश्वास किया। कूटनीति के खंजर से, तुमने उन पर आघात किया। मंदिर- मस्जिद का भी साहेब, क्या खूब है इस्तेमाल किया। जाति- धर्म में लड़वाकर, सत्ता पर तुमने राज किया। खून रंगे सिंहासन पर, तुम मत इतना अभिमान करो। अपनी ओछी करतूतों से, मत राजनीति बदनाम करो।।