देख के अपनी दयनीय दशा, आता है मन में एक सवाल । बंगलौर से लेकर दिल्ली तक, हो रहा क्यों मुझ पर अत्याचार ।। मैं तो जननी हूँ, माता हूँ , जिस ने तुमको जन्म दिया । अबला समझ समाज ने , फिर क्यों मुझसे ही छल किया।। बुलंद शहर में दर्द भरी मेरी, न सुनी किसी ने भी पुकार । ईश्वर क्यों तेरी धरती पर, नारी होना बन गया पाप ।। वो लड़के हैं, तुम लड़की हो, वो तो गलती कर देते हैं । ऐसे विचार रखने वाले, क्यों जन्म धरा पर लेते हैं।। त्रेता में अग्नि परीक्षा हुई, द्वापर में चीर हरण मेरा । कलियुग में कोख में मरती मैं, जाने क्या है अपराध मेरा ।। सब रिश्ते मुझे ही निभाने हैं,