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प्रकृति

तपता है सूरज दिनभर ,
दुनिया को रोशन करने को।

चलती रहती है वायु सदा ,
जन -जन को शीतल करने को ।

बहता है बादल भी खुद,
धरती को जीवन देने को।

स्वार्थी मात्र एक मानव है ,
जो खड़ा है सब कुछ लेने को ।

तुमको सब कुछ देती प्रकृति,
है शेष नहीं कुछ देने को।

इस धरती का सम्मान करो,
है जगह स्वर्ग यह रहने को।

अब मत इसको बर्बाद करो ,
इस स्वर्ग को स्वर्ग ही रहने दो।

                                 -मृणालिनी शर्मा



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